मरी हुई मुर्ग़ी ज़िंदा कर दी – गौस पाक की करामात का बयान : Ghous e Azam

हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी बयान करते हैं कि, इस दुनिया में जितने भी औलिया-ए-कराम आये हैं उनमें से कोई भी, करामात के लिहाज़ से हुज़ूर गौस पाक के बराबर नहीं है।

कुछ बुज़ुर्गों ने तो कहा कि गौस पाक की करामात का हाल बिल्कुल किसी “मोतियों की लड़ी” जैसा है , के जब टूटती है तो एक के बाद एक मोती गिरती चली जाती है , यानी ग़ौस-ए-आज़म की करामतों को कोई इंसान गिन सके, ऐसा बिलकुल नामुमकिन है।

आज हम हुज़ूर गौस पाक की ऐसी ही एक करामत के बारे में जानेंगे। इस आर्टिकल में उर्दू के कुछ मुश्किल शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन आखिर में उन शब्दों के मतलब भी लिखे हुए हैं।

गौस पाक (Ghous e Azam) की करामत नंबर 1 – मरी हुई मुर्ग़ी ज़िंदा कर दी 

हुज़ूर ग़ौस-ए-पाक, बग़दाद के शहंशाह, हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह के पास एक औरत अपने बेटे को लेकर आई और उनसे गुज़ारिश करते हुए कहा कि,

“ये मेरा बेटा आपसे बहोत मोहब्बत करता है, तो मैं चाहती हूँ कि आप इसकी तरबियत (अच्छी बातें सिखाना) फ़रमा दीजिये”

उस औरत की गुज़ारिश को ग़ौस-ए-आज़म ने क़बूल (Accept) कर लिया और उसके बेटे को अपने पास रखकर उसकी तरबियत करने लगे और अल्लाह की इबादत की बातें बताने और सिखाने लगे।

एक दिन की बात है जब उस लड़के की माँ दुबारा ग़ौस-ए-पाक के पास जाकर अपने बेटे का हाल चाल लेने का सोचती है और जब वो ग़ौस-ए-पाक के दरबार में पहुंचती है तो देखती है कि उसका बेटा सूखी हुई जौ की रोटी खा रहा है और वो भूख और रातों को जागकर अल्लाह की इबादत करने की वजह से काफ़ी ज़्यादा कमज़ोर हो गया है।

ये सब देखकर वो औरत हुज़ूर ग़ौस-ए-पाक की खिदमत में जाती है तो वो वहाँ देखती है कि हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म के पास एक बर्तन में मुर्ग़ियों की कुछ हड्डियां राखी हुई हैं , जिसे थोड़ी देर पहले ही ग़ौस-ए-पाक ने खाया था। ये सब देखकर उस औरत ने ग़ौस पाक से बोला,
“या गौस पाक, आप ख़ुद तो मुर्ग़ी खा रहे हैं और मेरे बेटे को सूखी हुई जौ की रोटियां खिला रहे हैं ?”

उस औरत की बात को सुनकर, हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म (Ghous e Azam) ने बर्तन में राखी हुईं मुर्ग़ी की उन हड्डियों पर अपना हाथ फेरा और फ़रमाया (बोला) –
قُوْمِي بِإِذْنِ اللَّهِ الَّذِي يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ (अल्लाह पाक के हुक्म से ज़िंदा हो जा, जो गली हुई हड्डियों को ज़िंदा करने वाला है)

जैसे ही हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म ने ये बोला, वो मुर्ग़ी बिलकुल सही सलामत ज़िंदा खङी हो गयी और एक आम सी मुर्ग़ी की तरह आवाज़ निकालने लगी।

इसके बाद हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म ने उस औरत से बोला कि जिस दिन तुम्हारा बेटा इस दर्जे (लेवल) पर पहुँच जायेगा, फिर उसकी जो भी मर्ज़ी होगी वो खा सकता है।
(बहजतुल असरार, पेज नंबर – 128)

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की हुज़ूर ग़ौस-ए-पाक पे रहमत हो और उनके सदक़े में हम सब का ईमान पर खात्मा और बेहिसाब मग़फ़िरत हो – आमीन सुम्मा आमीन

जिस तरह मुर्दे जिलाये, इस तरह मुर्शिद मेरे
मुर्दा दिल को भी जिला, या ग़ौस-ए-आज़म दस्तगीर।
(वसाइल-ए-बख़्शिश, पेज नंबर – 547)

शेर का मतलब:
ऐ मेरे प्यारे-प्यारे मुर्शिद हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म! आपने जिस तरह से मुर्दा जिस्मों को ज़िंदा किया उसी तरह से हमारे मुर्दा दिलों को भी ज़िंदा फ़रमा दीजिये।

मुश्किल शब्दों के अर्थ-

बयान – कोई बात बताना या बोलना,           औलिया-ए-कराम – सूफी संत लोग जो अल्लाह/ईश्वर के क़रीब होते हैं

करामत – ऐसे काम जिन्हें कोई आम इंसान न कर सकता हो, उसे करामत कहते हैं
बुज़ुर्ग – उम्रदराज़ या सूफी संत लोगों के लिए भी इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है

शहंशाह – राजा,                                      गुज़ारिश – रिक्वेस्ट, इल्तेजा, निवेदन

तरबियत – पालन-पोषण, परवरिश शिक्षा, तालीम, सभ्यता और शिष्टाचार की शिक्षा

क़बूल – Accept कर लेना, मान जाना,         फ़रमाया – बोलना या बताना

हम उम्मीद करते हैं कि आप इस लेख को अपने सारे दोस्तों के साथ अपने व्हाट्सप्प और फेसबुक के ग्रुप में भी शेयर करेंगे ताकि दुनिया के तमाम लोग जो हुज़ूर ग़ौस-ए-पाक को नहीं मानते हैं उनको भी ग़ौस-ए-पाक के बारे में पता चल सके।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *